रोज़ रोज़ Roz Roz Lyrics in Hindi – The Yellow Diary

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कभी कभी लागे
रहा अनसुना
जो भी मन में लागे
कहा अनकहा

कभी कभी लागे
रहा अनसुना
जो भी मन में लागे
कहा अनकहा

किनारे, किनारे
पे रह गयी नइया रे
सवालों भरे हो
ये सारे नज़ारे

रोज़ रोज़ आते हो
आंखें क्यों चुराते हो
है मुझे लगे जैसे
खुद को ही छुपाते हो

रोज़ रोज़ आते हो
आंखें क्यों चुराते हो
है मुझे लगे जैसे
खुद को ही छुपाते हो

ऐसा क्या भला
मन में खल रहा
हाँ ऐसा क्या भला
मन में खल रहा

जिया जो ये मेरा
ढूंढे लम्हे सारे
जहां तू था मेरा
वहां अब धुआं रे

पुकारे फिरे हैं
तुझे दिल मेरा रे
सवारे सवारे
भीगी ये अंखियां रे

रोज़ रोज़ आते हो
आंखें क्यों चुराते हो
है मुझे लगे जैसे
खुद को ही छुपाते हो

रोज़ रोज़ आते हो
आंखें क्यों चुराते हो
है मुझे लगे जैसे
खुद को ही छुपाते हो

ऐसा क्या भला
मन में खल रहा
हाँ ऐसा क्या भला
मन में खल रहा

सारे जहां रे..
हुए जो हमारे..

मिले हैं वहीँ पे..
जहां दिल मिला रे..

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